एक ईश्वरको पकडे रहनेसे इहलौकिक , पारलौकिक अनेकों लाभ होते है, पर ईश्वरको त्यागते ही जीवका सब कुछ व्यर्थ हो जाता है।
व्याकुल होकर उसके लिए रोनेसे ही वह मिलता है। लोग लड़के - बच्चेके लिए , रुपये - पैसे के लिए कितना रोते हैं , किन्तु भगवान के लिए क्या कोई एक बून्द भी आंसू टपकता है ; उसके लिए रोओ , आंसू बहाओ तब उसको पाओगे।
ईश्वरको पानेका उपाय केवल विश्वास है। जिसे विश्वास हो गया, उसका काम बन गया।
मुहंमेँ राम बगलमें छुरी मत रखो।
ईश्वरके नामसे ऐसा बिश्वास चाहिए की मैंने उसका नाम लिया है , इससे अब मेरे पाप कहाँ ? मेरे अब बंधन कहाँ ?
एक ईश्वर ही सबका गुरु है।
जबतक अज्ञान है तबतक चोरसिका चक्कर है।
दूसरेको सिखानेके लिए व्याकुल मत हो। जिससे तुम्हे ज्ञान -भक्ति प्राप्त हो , ईश्वरके चरण - कमल में मन लगे वही उपाय करो।
परनिन्दा और परचर्चा कभी न करो।
विश्वास तरता है और अहंकार डुबाता है।
पहले संसार करके पीछे भगवान की प्राप्तिकी इच्छा करते हो। ऐसा न करके पहले भगवानको लेकर पीछे संसार करनेकी इच्छा क्यों नहीं करते ? इससे बहुत सुख पाओगे।
सात्विक साधकमे बहरी दिखवेका भाव तनिक भी नहीं रहता।
जो मुर्ख वासना के रहते गेरुआ वस्त्र धारण करता है उसका यह लोक और परलोक दोनो नष्ट हो जाते हैं।
वीर साधक इस संसार का बोझ सिरपर उठाकर भी भगवान्की ओर निहारते रह सकते हैं।
विषयासक्ति जितनी ही घटेगी ईश्वरकी प्रति प्रेम भी उतना ही बढ़ता जाएगा।
देहको चाहे जितना सुख -दुःख हो , भक्त उसका ख्याल नहीं करते। उसकी वृति तो प्रभुके चरणोंमें अनन्यभावसे लगी रहती है।
तत्वज्ञान होनेसे मनुष्य का पूर्व स्वभाव् बदल जाता है।
स्वामीके जीते रहते ही स्त्री ब्रह्मचर्य धारण करती है , वह नारी नहीं है , वह तो साक्षात भगवती है।
ईश्वरका प्रेम पाकर मनुष्य साडी बाह्य वस्तुओंको भूल जाता है। जगत् का ख़याल उसको नहीं रहता , यहांतक की सबसे प्रिय अपने शरीरको भी भूल जाता है। जब ऐसी अवस्था आवे तब समझना चाहिए की प्रेम प्राप्त हुआ।
प्रपंचमे मनुष्यका आत्मपतन हो ही जाता है।
अहंकार करना व्यर्थ है। जीवन , यौवन कुछ भी यहाँ नहीं रहेगा। सब दो घडीका सपना है।
मनसे रोकर भक्ति मांगोगे तो वह अवश्य देगी। इसमें जरा भी शक नहीं है।
ज्ञानोन्माद होनेसे कर्त्तव्य फिर कर्त्तव्य नहीं रह जाता। उस अवस्थामें भगवान उसका भर ले लेते हैं।
ईश्वर हैं - इस बातका जिसे ठीक बोध हो गया वह फिर सांसारिक मायामें नहीं पड़ता।
पुस्तकें हजार पढ़ो , मुखसे हजार श्लोक कहो , पर व्याकुल होकर उसमें डुबकी नहीं लगानेसे उसे पा न सकोगे।
व्याकुल होकर उसके लिए रोनेसे ही वह मिलता है। लोग लड़के - बच्चेके लिए , रुपये - पैसे के लिए कितना रोते हैं , किन्तु भगवान के लिए क्या कोई एक बून्द भी आंसू टपकता है ; उसके लिए रोओ , आंसू बहाओ तब उसको पाओगे।
ईश्वरको पानेका उपाय केवल विश्वास है। जिसे विश्वास हो गया, उसका काम बन गया।
मुहंमेँ राम बगलमें छुरी मत रखो।
ईश्वरके नामसे ऐसा बिश्वास चाहिए की मैंने उसका नाम लिया है , इससे अब मेरे पाप कहाँ ? मेरे अब बंधन कहाँ ?
एक ईश्वर ही सबका गुरु है।
जबतक अज्ञान है तबतक चोरसिका चक्कर है।
दूसरेको सिखानेके लिए व्याकुल मत हो। जिससे तुम्हे ज्ञान -भक्ति प्राप्त हो , ईश्वरके चरण - कमल में मन लगे वही उपाय करो।
परनिन्दा और परचर्चा कभी न करो।
विश्वास तरता है और अहंकार डुबाता है।
पहले संसार करके पीछे भगवान की प्राप्तिकी इच्छा करते हो। ऐसा न करके पहले भगवानको लेकर पीछे संसार करनेकी इच्छा क्यों नहीं करते ? इससे बहुत सुख पाओगे।
सात्विक साधकमे बहरी दिखवेका भाव तनिक भी नहीं रहता।
जो मुर्ख वासना के रहते गेरुआ वस्त्र धारण करता है उसका यह लोक और परलोक दोनो नष्ट हो जाते हैं।
वीर साधक इस संसार का बोझ सिरपर उठाकर भी भगवान्की ओर निहारते रह सकते हैं।
विषयासक्ति जितनी ही घटेगी ईश्वरकी प्रति प्रेम भी उतना ही बढ़ता जाएगा।
देहको चाहे जितना सुख -दुःख हो , भक्त उसका ख्याल नहीं करते। उसकी वृति तो प्रभुके चरणोंमें अनन्यभावसे लगी रहती है।
तत्वज्ञान होनेसे मनुष्य का पूर्व स्वभाव् बदल जाता है।
स्वामीके जीते रहते ही स्त्री ब्रह्मचर्य धारण करती है , वह नारी नहीं है , वह तो साक्षात भगवती है।
ईश्वरका प्रेम पाकर मनुष्य साडी बाह्य वस्तुओंको भूल जाता है। जगत् का ख़याल उसको नहीं रहता , यहांतक की सबसे प्रिय अपने शरीरको भी भूल जाता है। जब ऐसी अवस्था आवे तब समझना चाहिए की प्रेम प्राप्त हुआ।
प्रपंचमे मनुष्यका आत्मपतन हो ही जाता है।
अहंकार करना व्यर्थ है। जीवन , यौवन कुछ भी यहाँ नहीं रहेगा। सब दो घडीका सपना है।
मनसे रोकर भक्ति मांगोगे तो वह अवश्य देगी। इसमें जरा भी शक नहीं है।
ज्ञानोन्माद होनेसे कर्त्तव्य फिर कर्त्तव्य नहीं रह जाता। उस अवस्थामें भगवान उसका भर ले लेते हैं।
ईश्वर हैं - इस बातका जिसे ठीक बोध हो गया वह फिर सांसारिक मायामें नहीं पड़ता।
पुस्तकें हजार पढ़ो , मुखसे हजार श्लोक कहो , पर व्याकुल होकर उसमें डुबकी नहीं लगानेसे उसे पा न सकोगे।